''कौन अपनी जुबान खोलेगा ।
कौन सच और झूठ तोलेगा ॥
दर्द इक आम आदमी का कहो,
हम ना बोले तो कौन बोलेगा ॥''
मनवीर 'मधुर' हिंदी कविता की वाचिक परम्परा में ओजस्वी धारा के नयी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं ! ये जहाँ अन्तर्विश्वविद्यालयी काव्य-प्रतियोगिताओं में लगातार चार वर्ष तक प्रथम विजेता रहे, वहीं जी-इस्माइल टी.वी. चैनल पर "क्योंकि ये है हास्य-कवि मुक़ाबला" में भी प्रथम विजेता रहे। साधना टी.वी. के लोकप्रिय कार्यक्रम "सतमोला-कवियों की चौपाल" के जनप्रिय ऐंकर रहे मनवीर 'मधुर' की प्रतिभा को हर कोई सराहता है। इस ब्लॉग में इनकी प्रतिभा की झलक देख सकते हैं । "हम न बोले तो कौन बोलेगा" लिंक को दबाते ही प्रतिदिन दैनिक समाचार-पत्रों के चर्चित समाचार-शीर्षक पर 'मधुर' की काव्यात्मक प्रतिक्रिया पढ़ने को मिलेगी । इनका वैचारिक परिश्रम, अद्भुत काव्य-शिल्प, गहन भाव-संवेदना, अदम्य तेवर, मंच पर कविता कहने और अपनी बात रखने का सलीका एवं इन सबके साथ प्रस्तुति का मौलिक आत्मविश्वास इन्हें अपनी पीढ़ी के अन्य रचनाधर्मियों से सहज ही विशिष्ट बना देता है ! इनके भीतर में हिंदी की वाचिक परम्परा का गौरव और भविष्य की आशा का सूरज जगमगाता देखता हूँ ! मनवीर को उनकी ही पंक्तियों में कुछ इस प्रकार रेखांकित किया जा सकता है.......
"जीते जी यहाँ पे इतिहास गढ़ते हैं और, मरकर अमर कहानी बन जाते हैं !
इस भूमि पे दधीचि देवों की सुरक्षा हेतु, हड्डियों को देके महादानी बन जाते हैं !!
भारत की मांटी ही विलक्षण है जिसे चाट, कान्हा खुद ईश्वर के मानी बन जाते हैं !
उद्धव से ज्ञानी यहाँ मूर्ख बन जाते और, कालीदास जैसे मूर्ख ज्ञानी बन जाते हैं !!"
--अनुपम श्रीवास्तव (केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा)
कौन सच और झूठ तोलेगा ॥
दर्द इक आम आदमी का कहो,
हम ना बोले तो कौन बोलेगा ॥''
मनवीर 'मधुर' हिंदी कविता की वाचिक परम्परा में ओजस्वी धारा के नयी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं ! ये जहाँ अन्तर्विश्वविद्यालयी काव्य-प्रतियोगिताओं में लगातार चार वर्ष तक प्रथम विजेता रहे, वहीं जी-इस्माइल टी.वी. चैनल पर "क्योंकि ये है हास्य-कवि मुक़ाबला" में भी प्रथम विजेता रहे। साधना टी.वी. के लोकप्रिय कार्यक्रम "सतमोला-कवियों की चौपाल" के जनप्रिय ऐंकर रहे मनवीर 'मधुर' की प्रतिभा को हर कोई सराहता है। इस ब्लॉग में इनकी प्रतिभा की झलक देख सकते हैं । "हम न बोले तो कौन बोलेगा" लिंक को दबाते ही प्रतिदिन दैनिक समाचार-पत्रों के चर्चित समाचार-शीर्षक पर 'मधुर' की काव्यात्मक प्रतिक्रिया पढ़ने को मिलेगी । इनका वैचारिक परिश्रम, अद्भुत काव्य-शिल्प, गहन भाव-संवेदना, अदम्य तेवर, मंच पर कविता कहने और अपनी बात रखने का सलीका एवं इन सबके साथ प्रस्तुति का मौलिक आत्मविश्वास इन्हें अपनी पीढ़ी के अन्य रचनाधर्मियों से सहज ही विशिष्ट बना देता है ! इनके भीतर में हिंदी की वाचिक परम्परा का गौरव और भविष्य की आशा का सूरज जगमगाता देखता हूँ ! मनवीर को उनकी ही पंक्तियों में कुछ इस प्रकार रेखांकित किया जा सकता है.......
"जीते जी यहाँ पे इतिहास गढ़ते हैं और, मरकर अमर कहानी बन जाते हैं !
इस भूमि पे दधीचि देवों की सुरक्षा हेतु, हड्डियों को देके महादानी बन जाते हैं !!
भारत की मांटी ही विलक्षण है जिसे चाट, कान्हा खुद ईश्वर के मानी बन जाते हैं !
उद्धव से ज्ञानी यहाँ मूर्ख बन जाते और, कालीदास जैसे मूर्ख ज्ञानी बन जाते हैं !!"
--अनुपम श्रीवास्तव (केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा)
Contact Details:
Kavi Manvir 'Madhur'
Resi.: 201, Sadar Bazar, Mathura (U.P.) India
Mob.: +91-9997777666
e-mail: manvirmadhur@gmail.com
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